पैसे मांग कर न्यूज़ चैनल ने युवा पत्रकार का दिल तोड़ दिया

सभी भाइयों को मेरा नमस्कार,

मैं एक छोटा सा पत्रकार (journalist) हूँ और 4 वर्षों से पत्रकारिता कर रहा हूँ। इस बदलते दौर में मुझे नहीं लगता कि मैं कभी अच्छा पत्रकार बन पाउँगा। मेरा सपना था कि मैं भी एक सच्चा पत्रकार बनूँगा पर अब तो पत्रकारिता का मतलब ही बदल चुका है। पहले पत्रकारिता एक मिशन था परन्तु अब ये करप्ट व कारपोरेट बन चुकी है। सभी जानते हैं कि मीडिया में काम करने के लिए अच्छी पहचान या बहुत पैसा होना चाहिए। आज पत्रकार बनना बहुत ही आसान हो गया है क्योंकि पत्रकार बनने के लिये चैनल को आप के तजुर्बे और आपकी योग्यता की जरूरत नहीं है। उन्हें तो जरूरत है आप से मिलने वाले मोटे पैसे की।

कुछ बड़े और अच्छे चैनल भी हैं जो पढ़े-लिखे व अनुभवी पत्रकारों को मौका देते हैं, काम का पैसा भी देते हैं, परन्तु ना के बराबर। ज्यादातर चैनल की खुली लिस्ट है जो कि सिक्योरिटी अमाउंट के रूप में जमा करनी पड़ती है। पी.सी.आई. (Press Council of India) के अनुसार पत्रकार बनने के लिए आपकी योग्यता पत्रकारिता में 12+ डिग्री/डिप्लोमा या तजुर्बा होना चाहिए, परन्तु कुछ बड़े चैनल तो ऐसे भी हैं जिन्होंने 10वीं पास भी पत्रकार नियुक्त कर रखे हैं। और तो और, मोटा पैसा लेने के बाद भी काम करने का पैसा (salary) भी नहीं देते हैं। अगर मेरी बात गलत है तो सभी पत्रकारों के सैलरी अकॉउंट की जांच करवा लीजिये। हाँ, मेरी बात सही है। मैं जो कुछ बता रहा हूँ, वो एक कड़वा सत्य है। अब सवाल ये है कि जो पत्रकार मोटा पैसा चैनल को देकर नियुक्त होते हैं, बदले में काम के पैसे (salary) भी नहीं लेते हैं तो फिर उनके घर कैसे चलते हैं? कौन उठाता है इनके खर्च और फिर कहाँ से खरीदते है बड़ी-बड़ी लक्जरी गाड़ियाँ?

ऐसा भी नहीं है कि बड़े चैनलों में काम करने वाले सभी पत्रकार अमीर घर से ताल्लुक रखते हैं या फिर शौकिया पत्रकारिता कर रहे हैं। ज्यादातर का उद्देश्य नाम के साथ-साथ पैसा कमाना होता है। फिर क्या है इसका कारण….?

-आज बिक रहे हैं पत्रकार और बिक रही है उनकी पत्रकारिता
-आज पत्रकार समाज को सत्य दिखाने की जगह सत्य छुपाने में जुटे हुए हैं
-क्या यही है संविधान के चौथे स्तम्भ का काम.
-समाज में बड़ी-बड़ी बातें करने वाले ही समाज में बड़े-बड़े गलत काम कर रहे हैं.
-अपने संविधान का चौथा स्तम्भ (PRESS) आँखे बंद करके बैठा हुआ है.

सभी को पता है, अगर कोई संविधान के चौथे स्तम्भ का हिस्सा बनना चाहता है या फिर प्रेस में काम करना चाहता है तो ज्यादातर चैनल की रेट लिस्ट ये होती है…

1) अगर नेशनल चैनल तो 5,00,000 से 2,00,000
2) अगर रीजनल चैनल तो 2,00,000 से 50,000

और लोकल चैनल या न्यूज़ पेपर/मैगजीन की तो बात ही क्या करें, इनकी तो पत्रकार बनाने की पूरी दुकान है। जो आये सो पाये। पैसा दे जाओ और संविधान के चौथे स्तम्भ का हिस्सा बन जाओ। अब सवाल ये है कि पैसा देकर और बिना सेलरी के पत्रकार क्यों काम करने को तैयार हो जाते हैं? क्योंकि चैनलों की शर्तें, सिक्यूरिटी अमाउंट के रूप में मोटा पैसा देने को जो लोग तैयार होते हैं वो ज्यादातर खनन माफिया, शिक्षा माफिया, भूमाफिया, सट्टा चलाने वाले, जुआ खिलाने वाले, अवैध शराब ठेका चालक, चरस विक्रेता, अन्य गलत धंधे करने वालों के आदमी होते हैं। ये लोग ही पैसा देकर चैनल लाते हैं और अपने नीचे किसी को रख लेते हैं जो उनके लिए मीडिया का काम करता रहता है और उनके गलत काम में प्रशासन के द्वारा सहयोग करता है।

जो मैंने लिखा है वह एक कड़वा सत्य है। मैने 4 वर्षों में ही समझ लिया भारत के संविधान के चौथे स्तम्भ (press) का सच। परन्तु मेरा सवाल है उनसे जो पत्रकारिता में वरिष्ठ हैं। मेरा सवाल है उन बड़े चैनलो अथवा समाचारपत्र के संपादकों से जो समाज को सुधारने का जिम्मा लेते हैं, जो समाज को सत्य दिखाते हैं। क्या वे कभी अपने घर में चल रही इस बुराई को बदल पाएंगे? जिससे किसी का सपना अधूरा ना रह पाए और समाज का सत्य जनता के सामने आ पाए। अगर कोई भाई मेरे विचारो से सहमत हो तो मुझे कॉल भी कर सकता है। इसी post को मैंने Agra के local वाट्सअप ग्रुप में डाला था तो कई पत्रकारों ने गालियाँ दी और मेरा अपमान भी किया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

अन्य ख़बरें